देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन एक बड़ी समस्या है। गांवों में रोजगार के साधनों और सुविधाओं की कमी से अनेक गांव ऐसे हैं, जो भूतिया गांव में तब्दील हो गए हैं यानी इन गांवों में अब कोई नहीं रहता है। पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लॉक के नर्सिया गांव के सभी 17 परिवार गांव को छोड़कर रोजगार की तलाश में अन्य जगहों पर बस गए थे। इलेक्ट्रिकल व मैकेनिकल ट्रेड से आईटीआई करके सर्वेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू रावत भी दिल्ली में प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने चले गए। लेकिन, 2009 में परेशान होकर वह गांव वापस आ गए। उस समय नर्सिया गांव पूरी तरह से खाली हो गया था। गुड्डू के पास गांव में कोई काम नहीं था। इसलिए उन्होंने आसपास के गांवों से कांच की खाली बोतलों को जमा करना शुरू किया। वे इन बोतलों को अपनी कमर पर ढोकर लाते थे। दूरस्थ इलाकों में कबाड़ी न होने की वजह से लोग बोतल आदि को ऐसे ही फेंक देते थे। उन्होंने इन बोतलों को जमा करके एक ट्रक बोतलें कोटद्वार ले जाकर 45 हजार रुपये में बेच दीं। इससे प्रभावित होकर उन्होंने कबाड़ी की दुकान ही खोल दी। इससे कुछ कमाई हुई तो वैल्डिंग की भी दुकान खोल डाली।
गुड्डू को सबसे अधिक पीड़ा गांव में लावारिस घूमने वाली गायों को देखकर होती थी। क्योंकि गांव से पलायन करते समय लोग अपने पशुओं को ऐसे ही छोड़ देते थे। वे इनके लिए कुछ करना चाहते थे। जब उनके पास कुछ पैसा जमा हो गया तो उन्होंने एक दिन खुद ही गायों के लिए टीनशेड बना दिया और लावारिस गायों को यहां रखना शुरू किया। धीरे-धीरे गाय बढ़ने लगीं तो उनके सामने गायों के गोबर के निस्तारण की समस्या उत्पन्न हुई। बस यहीं से उन्होंने पहाड़ की पथरीली जमीन को उपजाऊ बनाने का अभियान शुरू किया। उनके पास करीब 17 हेक्टेयर जमीन थी, जिसका अधिकांश हिस्सा पथरीला था। उन्होंने इस गोबर को इस जमीन में डालना शुरू किया और आसपास से कुछ मिट्टी लाकर जमीन को खेती के लायक बनाया। धीरे-धीरे उन्होंने करीब 10 एकड़ जमीन को खेती के लायक बना दिया। यहीं नहीं 27 युवाओं को इस काम में रोजगार भी दिया हुआ है। उन्हें देखकर आसपास के अन्य लोग भी प्रेरित हो रहे हैं। सरकार भी उन्हें पूरी मदद कर रही है और बागवानी विभाग के लोग अन्य गांवों के लोगों को भी उनकी तरह ही काम करने की सलाह दे रही है।
गुड्डू रावत ने अपनी जमीन पर इस बार किवी के पौधे लगाए हैं। इसके अलावा उन्होंने मौसमी, माल्टा, ताइवानी अमरूद व नींबू भी लगाया हुआ है। वह अचार और जूस भी बनाते हैं। माल्टे के छिल्कों को सुखाकर उससे फेसवाश और पाउडर भी बना रहे हैं। यहीं नहीं इस बार गुड्डू ने पत्ता गोभी की तीन लाख और फूल गोभी की दो लाख पौध लगाई हैं।
दान करते हैं दूध देने वाली गायें
गुड्डू की गोशाला में इस समय करीब सौ गाय हैं। वह बताते हैं कि जब उनकी कोई गाय ब्याह जाती है तो वे उसे ऐसे व्यक्ति को दान कर देते हैं, जो उस गाय को रखना चाहता है। इससे गाय को घर मिल जाता है और उनके शेड में भी लावारिस गायों के लिए जगह बन जाती है।
गांव में लौटने लगे हैं लोग
गुड्डू को देखकर उनके गांव में दो परिवार वापस आ गए है और वे भी उनकी तरह अपनी जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं। गुड्डू बताते हैं कि अब उन्हें अपनी फसल का सही दाम भी मिलने लगा है। वे पूरी तरह से जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं। हालांकि अभी वे जैविक खेती का सरकारी प्रमाणपत्र नहीं ले पाए है, लेकिन उनकी फसल की गुणवत्ता व स्वाद से ही पता चल जाता है कि वह जैविक है। उन्होंने हाल ही में अपने खेत से 15 कुंतल अदरक छह हजार रुपए प्रति कुंतल की दर से बेचा है।