चंडीगढ़। विधानसभा चुनाव के ठीक एक साल बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आमने-सामने हैं। बरोदा में भाजपा से भले ही योगेश्वर दत्त और कांग्रेस से इंदुराज नरवाल मैदान में हों, लेकिन प्रतिष्ठा खट्टर और हुड्डा की दांव पर है। यही नहीं यह चुनाव जजपा की जाट वोटों पर पकड़ को भी साबित करने जा रहा है। चुनाव से पहले ही सोमवार को हुड्डा ने डॉ. कपूर नरवाल और जोगिन्द्र मोर का पर्चा वापस करवाकर मनोहर लाल को तगड़ा झटका दे दिया है। कपूर नरवाल ने पंचायती उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा था और उनका पर्चा वापस लेना भी एक तरह से पंचायती फैसला है। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा व जजपा में भीतरी तौर पर जिस तरह से असंतुष्ट मुखर हुए हैं, उससे सत्ताधारी गठबंधन की राह फिलहाल तो कठिन नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव में भले ही हुड्डा कांग्रेस को जिता नहीं सके, लेकिन उन्होंने दिखा दिया कि हरियाणा में कांग्रेस का मतलब हुड्डा है।
इंदुराज नरवाल को टिकट दिलाने में उनकी ही प्रमुख भूमिका रही। पिछले कुछ समय से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सैलजा की सक्रियता जरूर बढ़ी है, लेकिन यह सभी जानते हैं कि वह व्यापक जनाधार वाली नेता नहीं हैं और उनका प्रभाव कुछ ही पॉकेट तक सिमटा हुआ है। अब जिस तरह से हुड्डा ने बरोदा में किलेबंदी की है, उसने यह भी दिखा दिया है कि हरियाणा के चाणक्य भी वही हैं। पिछला चुनाव हारने के बाद योगेश्वर को दोबारा मौका देकर भाजपा ने इस चुनाव को जाट व गैर-जाट की लड़ाई में बदलने की कोशिश की थी। उसे लग रहा था कि कई जाट प्रत्याशी होने से योगेश्वर की राह आसान हो जाएगी, लेकिन हुड्डा के दांव में योगेश्वर की हार एक बार फिर तय कर दी है।
अगर पिछले साल के परिणामों पर नजर डालें तो कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा को 42566 व योगेश्वर दत्त को 37726 वोट मिले थे। उस समय का माहौल देखें तो भाजपा को स्पष्ट बढ़त दिख रही थी। वहीं योगेश्वर का स्टारडम भी भाजपा के पक्ष में था। लेकिन, बरोदा के मतदाताओं ने श्रीकृष्ण हुड्डा में विश्वास जताया। इस चुनाव में जेजेपी के जाट उम्मीदवार भूपेंद्र मलिक ने 32480 वोट लेकर योगेश्वर की राह को आसान बनाने की कोशिश जरूर की थी। इस चुनाव की कुंजी भी इन्हीं 32,480 वोटों में छिपी है। इस बार जेजेपी भाजपा के साथ है। पिछले चुनाव में वह भाजपा का विरोध कर रही थी और इसी वजह से उसे जाटों ने भाजपा के विरोध में समर्थन किया था। लेकिन इस बार जेजेपी का भाजपा के लिए वोट मांगना जाट मतदाताओं को रास आएगा यह कहना कठिन है। इसीलिए, अगर योगेश्वर फिर हार जाते हैं तो यह जेजेपी के लिए भी खतरे की घंटी होगी। क्योंकि इससे साफ हो जाएगा कि जेजेपी जाट वोट भाजपा को ट्रांसफर नहीं करा सकती और खुद जेजेपी के लिए भी यह उसके कोर वोट बैंक के खिसकने का अलार्म होगा। वहीं बरोदा की जीत हुड्डा का कांग्रेस और प्रदेश की राजनीति में कद ऊंचा कर देगी। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री मनोहर लाल के लिए भी प्रदेश में आगे की राह कठिन हो जाएगी।