नई दिल्ली। राहुल गांधी से मुलाकात के बाद पहली नजर में कांग्रेस का राजस्थानी संकट हल होता नजर आ रहा है, लेकिन अगर सचिन बिना कुछ हासिल किए लौटते हैं तो प्रदेश में उनकी हालत धोबी के … जैसी हो जाएगी यानी न घर के न घाट के। अशोक गहलोत उन्हें राज्य में तो राजनीति के लायक नहीं ही छोड़ेंगे। जिस तरह से गहलोत ने उनके खिलाफ शुरू से ही हमलावर रुख अपनाया हुआ है, उससे नहीं लगता कि वह उन्हें आगे भी कोई रियायत देने वाले हैं। दूसरी बात यह है कि सचिन ने भी काफी तैयारी के बाद ही बगावती तेवर अपनाए थे, लेकिन अगर गहलोत सत्ता में बने रहते हैं तो उनके लिए बाकी कुछ भी पाना जीरो ही होगा, क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष पद व उपमुख्यमंत्री की कुर्सी तो वह खो ही चुके हैं। इससे अधिक कांग्रेस के पास इस समय उन्हें देने के लिए सिर्फ मुख्यमंत्री का ही पद है और इस समय गहलोत को हटाना कमजोर पड़ चुके कांग्रेसी नेतृत्व के बस की बात नजर नहीं आता। इसलिए पायलट की शिकायतें दूर हो सकेंगी ऐसा नहीं लगता। हो सकता है कि उन्हें उनके दोनों पद वापस मिलने के साथ ही उनके एक दो समर्थकों को सरकार में और जगह मिल जाए, लेकिन हर हालत में यह पायलट की हार ही होगी। बेहतर होता कि पायलट अपने दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया से कुछ सीखते कि सौदेबाजी कैसे होती है और बगावत पर निकले कदम वापस लौटने पर कमजोर ही पड़ जाते हैं। हालांकि अगर राहुल इस संकट को सफलता से सुलझा लेते हैं तो यह खुद उनके और कांग्रेस दोनों के लिए बेहतर होगा। इससे राहुल आगे भी सक्रिय भूमिका में आ सकते हैं। लेकिन फिलहाल तो राजस्थान पर नजर रखने की जरूरत है।