हरियाणा भाजपा के नए अध्यक्ष पद पर पूर्व कृषिमंत्री ओमप्रकाश धनखड़ की तैनाती के कई पहलू हैं। अगर देखा जाए तो भाजपा ने उनकी नियुक्ति से जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश तो की ही है, साथ ही वे मुख्यमंत्री मनोहर लाल की भी पसंद हैं। अगर इस पद पर किसी प्रभावी व ताकतवर जाट नेता को तैनात किया जाता तो बेहतर होता और इसके लिए कैप्टन अभिमन्यु पहली पसंद होते। लेकिन, मुख्यमंत्री खुद को कैप्टन के सामने बहुत सहज नहीं मानते हैं, इसलिए उनकी बात सिरे नहीं चढ़ सकी। यही नहीं जजपा भी कैप्टन के नाम पर बहुत सहज नहीं थी। अब भाजपा, जजपा, इनेलो व कांग्रेस (परोक्ष तौर पर) में पार्टी की कमान जाट नेताओं के हाथों में आ गई है। अगर प्रदेश के जाट मतदाता किसी एक जाट नेता के पीछे खड़ा होना चाहते हैं तो निश्चित ही वे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व मौजूदा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला में से किसी एक को चुनेंगे। इनेलो प्रमुख अभय सिंह चौटाला चाहे कितने भी दावे करें, लेकिन सत्यता यही है कि जनता हाल के चुनाव में साफ कर चुकी है कि इनेलो उनकी पसंद नहीं है। अब अगर धनखड़ की बात करें तो वे निवर्तमान अध्यक्ष सुभाष बराला के ही समान हैं और मुख्यमंत्री से पूछे बिना शायद ही कुछ करें। धनखड़ लगातार दावा करते रहे हैं कि उनकी प्रधानमंत्री मोदी से सीधी बात है और वे भाजपा में शीर्ष स्तर तक दखल रखते हैं, लेकिन हकीकत में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मालूम है कि उनका कौन सा नेता कितना दम रखता है। धनखड़ की पहली परीक्षा बरोदा का उपचुनाव होगा। हुड्डा के प्रभाव वाली कांग्रेस की इस सीट को जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा, लेकिन अगर भाजपा यहां हारती है तो धनखड़ के लिए भी आगे की राह आसान नहीं होगी। कुल मिलाकर धनखड़ की नियुक्ति से भाजपा में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद करना बेमानी होगा। पिछला चुनाव हारने के बाद तो धनखड़ वैसे भी कमजोर साबित हो ही चुके हैं। धनखड़ 23 जुलाई को विधिवत कार्यभार ग्रहण करेंगे।