देहरादून। राजनीति में द्विअर्थी बातों का बड़ा महत्व है। इसी वजह से अक्सर विवाद होने पर नेताजी कहते हैं कि आप जो समझ रहें हैं न मेरे कहने का वह अर्थ नहीं था। अब भाजपा के एक ऐसे ही द्विअर्थी नारे ने पूरी पार्टी में कहीं खुशी, कहीं गम की स्थिति उत्पन्न कर दी है। भाजपा ने नारा दिया है, अबकी बार साठ पार। बस इस नारे को पार्टी के बुजुर्ग नेताओं ने अपने हित में मानते हुए ऐलान कर दिया है कि पार्टी इस बार साठ साल से अधिक के नेताओं को ही टिकट देगी, क्योंकि पार्टी में 75 पार वालों को टिहकट न देने का नियम है, इसलिए 75 का होने से पहले कुछ नेताओं को भाग्य चमकाने का मौका देने के लिए ही अबकी बार साठ पार का नारा दिया गया है। वहीं साठ साल से कम के नेता भी मान रहे हैं कि इस बार इस नारे की वजह से उन्हें तो मौका नहीं मिलने जा रहा। कई नेता तो इसे लेकर आपस में उलझ भी रहे हैं। उनका कहना है कि हम साठ से कम हैं, लेकिन हमारा आधार साठ वालों से कई ज्यादा है।
ऐसे ही कुछ नेताओं को जब हमने समझाया कि भाई अबकी बार साठ पार का मतलब साठ से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट देना नहीं, बल्कि साठ से अधिक सीटें हासिल करना है तो उन्होंने इस पर भरोसा करने से ही इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जब 2017 में कांग्रेस के खिलाफ बहुत ही तेज लहर थी तो भी हम साठ नहीं पा सके तो अब कैसे साठ से अधिक सीटें पा सकते हैं। दूसरे सरकार कुछ भी ऐसा नहीं कर सकी, जिससे यह कहा जाए कि लोग भाजपा को ही वोट देने के लिए आतुर हैं। हमने कहा कि सरकार ने उत्तर प्रदेश के साथ 21 सालों से लंबित संपत्ति विवाद निपटा दिए हैं, क्या यह बड़ी बात नहीं है तो एक नेताजी ने कहा कि भाई साहब अाप कुछ समझते भी हो। जरा बताओ कि कोई जमीन या भवन उत्तर प्रदेश के पास रहे या उत्तराखंड के, इससे आम लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा। बस उस संपत्ति पर उत्तर प्रदेश शासन की जगह उत्तराखंड शासन का बोर्ड लग जाएगा। अब हमें भी यह तर्क समझ में आ गया कि बात तो सही है। फिर सरकार द्वारा पूरे राज्य में इस कथित उपलब्धि के होर्डिंग क्यों लगे हैं, हमें यह सवाल जरूर बेचैन करने लगा।
खैर हम फिर से अपनी बात को साबित करने के लिए मूल मुद्दे पर आ गए कि सरकार चारधाम रोड बना रही है, नेताजी तपाक से बोल उठे, भाई्र साहब चार धाम रोड पर वोट तो पिछली बार मिल गए थे, अब तो चार धाम रोड से हो रही दिक्कतों की चर्चा ज्यादा है। दूसरी बात, चार धाम का क्रेडिट किसी को मिलेगा तो वह प्रधानमंत्री मोदी हैं। राज्य सरकार को जो सड़कें बनानी थीं, उनकी तो हालत खराब है। राजधानी देहरादून सहित राज्य के सभी शहरों में सड़कों का हाल बुरा है। सीवर, पानी व नाली के लिए खुदी सड़के सालो से बनी नहीं हैं। यही नहीं शहीदों के नाम वाली सड़कों की तक सरकार सुध नहीं ले रही है। उदाहरण के लिए शहीद राजीव जुयाल मार्ग को ही ले लें। हम अागे कुछ बोलते, इससे पहले ही नेताजी बोल उठे, बिजली का हाल यह है कि आती कम जाती ज्यादा है। यहीं नहीं कभी तो ऐसी आती है कि ट्यूब भी नहीं जलती और कभी तमाम उपकरण फंूक देती है। महंगी भी कम नहीं है। जब केजरीवाल 300 यूनिट मुफ़त देने की बात कर रहे हैं, तो हमारी सरकार ऐसा क्यों नहीं करती। यहीं नहीं बिजली विभाग के भ्रष्ट अफसर व कर्मचारी जले पर नमक छिड़कने का काम करते रहते हैं। यह कहते हुए नेताजी ने आत्मावलोकन वाले अंदाज में जातिवाद से लेकर चमचों व बाहरी राज्यों के पैसे वालों को उपकृत करने की बात कहते हुए साबित कर दिया साठ पार सीटें तो आ नहीं सकतीं इसलिए अबकी बार साठ पार का मतलब साठ साल से अधिक के लोगों को टिकट देना ही है। अब तो हमें भी नेताजी की बात में दम दिखने लगा है, क्योंकि भाजपा के जिन विधायकों ने अबकी बार साठ पार के नारे से शहर की दीवारों को पोता है, उनकों भी अपने जीतने का भरोसा नहीं है। खैर देखते हैं कि आगे क्या होता है?