उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी (आप) की तैयारी और साथ ही उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) की सक्रियता से अभी कांग्रेस और भाजपा जरा भी विचलित नजर नहीं आ रहे हैं। यदि इन दोनों राष्ट्रीय दलों का यही दृष्टिकोण रहा और आप व उक्रांद अपनी बात को सही से लोगों के सामने रख पाए तो उत्तराखंड में इस बार तीसरी ताकत का उभरना तय माना जा रहा है। पिछले 20 सालों में जिस तरह से उत्तराखंड में संस्थागत भ्रष्टाचार पनापा है, उससे आम जनमानस बहुत ही त्रस्त है। उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश और हरियाणा के धनबलियों और बाहुबलियों की जिस तरह से सरकारों के संरक्षण में एंट्री हुई है, उसने भी पर्वतीय जनमानस को झकझोर दिया है। जिस उत्तराखंड में सहकारिता आंदोलन की जड़ें काफी मजबूत थीं आज वहां पर सहकारिता बस नाम की ही रह गई है। अपने हितों के लिए कुछ धनबलियों ने सरकारों के साथ मिलकर जेबी सहकारी संस्थाएं बनाकर तमाम संसाधनों पर कब्जा कर लिया है।
भ्रष्टाचार का आलम यह है कि ऑफिसों में टेबल पर बैठकर रिश्वत की दर तय होती है। खुले आम दावा किया जाता है कि पैसा ऊपर तक जाता है। उत्तर प्रदेश में शराब कारोबारी पॉन्टी चड्ढा ने करीब 12 साल पहले एक व्यवस्था शुरू की थी, जिसके तहत शराब की हर बोतल पर 10 रुपए अतिरिक्त वसूले जाते थे और यह पैसा सीधे प्रदेश की एक बड़ी नेता के भाई की जेब में पहुंचता था। इस पैसे से नेता का वह भाई आज अरबपति बन चुका है। आज उत्तराखंड में शराब और बीयर की हर बोतल पर 10 रुपये की अतिरिक्त वसूली हो रही है। सवाल यह है कि यह पैसा किसकी जेब में जा रहा है। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है और यह सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आदशर् मानती है, लेकिन क्या सच में सरकार मोदी का अनुसरण कर रही है। मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी बेदाग है। उनके भाई-भतीजे व बाकी रिश्तेदार आम जीवन जीते हैं, लेकिन क्या इस सरकार में भी ऐसा ही है।
ऐसा नहीं है कि यह सब भाजपा सरकार में हो रहा है। कांग्रेस की सरकार में भी ऐसा ही होता रहा है। शराब पर लिया जाने वाला यह जजिया कर यह दिखाता है कि उत्तराखंड में सरकारों की प्राथमिकता जनता का भला नहीं, बल्कि अपना पेट भरना है। यही वजह है कि राज्य में हर पांच साल में सरकारें बदलती रही हैं। कांग्रेस व भाजपा को बदल-बदलकर उत्तराखंड की जनता देख चुकी है। इसीलिए इस बार तीसरी ताकत की बात बहुत ही मजबूती से हो रही है। कई प्रेक्षकों को लगता है कि आम आदमी पार्टी के आने से सत्ताधारी भाजपा को लाभ होगा, लेकिन ऐसा ही अनुमान दिल्ली में भी लगाया गया था। दिल्ली में उत्तराखंड के लोगों ने जिस तरह से आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया, उससे आप भी उत्साहित है। अब सवाल यह है कि आप उत्तराखंड में किन लोगों पर दांव खेलती है। पंजाब में आप जिस तरह से शुरुआत में बने माहौल का फायदा उठाने में विफल रही थी, वह गलती उसे उत्तराखंड में नहीं करनी चाहिए। साथ ही उत्तराखंड में आप को यह बताना होगा कि वह भ्रष्टाचार के मोर्चे पर क्या करेगी। आम लोगों को राहत दिलाने की उसकी क्या योजना है। इतना तय है कि अगर आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड में ठीक से मोर्चाबंदी की और अविवादित लोगों पर दांव खेला तो 2022 में उसका उभार तय है। जहां तक उत्तराखंड क्रांति दल का सवाल है तो दिवाकर भट्ट जैसे नेताओं ने उसकी विश्वसनीयता इतनी कमजोर कर दी हे कि अब लोग उस पर दांव खेलने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर। लेकिन इतना तय है कि अब लोग उक्रांद को कांग्रेस व भाजपा के साथ एक ही पायदान पर रख रहे हैं। यह दोनों ही राष्ट्रीय दलों की बड़ी हार है।