चीन के मुद्दे पर शरद पवार ने जिस तरह से नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन किया और अपनी सहयोगी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को नसीहत दी, उससे महाराष्ट्र की राजनीति में नए ध्रुवीकरण के संकेत मिलने लगे हैं। शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी विधान परिषद चुनावों को अक्टूबर तक टाले जाने की राज्यपाल की सलाह के बाद आशंका व्यक्त की है कि भाजपा महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने के लिए मध्य प्रदेश जैसा खेल कर सकती है। हालांकि, उद्धव सरकार के गठन के बाद से ही इस बात की आशंकाएं जतायी जाने लगीं थीं कि इसका भविष्य कितना लंबा होगा। कोरोना को लेकर राज्य सरकार के कामकाज के तरीके से भी सवाल उठे हैं। मुख्यमंत्री ने तमाम विरोधाभासों के बावजूद सभी सहयोगी दलों के साथ समन्वय बनाने की कोशिश की है, लेकिन इस बेमेल गठबंधन में इससे शायद ही किसी को कोई राजनीतिक लाभ दिख रहा हो। शरद पवार जानते हैं कि एक डगमगाता गठबंधन कभी भी ध्वस्त हो सकता है और उस स्थिति में उनके लिए अजीत पवार फिर चुनौती खड़ी कर सकते हैं। ऐसे में वह पहले ही कुछ ऐसा कर देना चाहते हैं, जिससे ऐसी स्थिति ही न बने। इसलिए अब महाराष्ट्र को लेकर भाजपा नहीं पवार के अगले कदम पर नजर रखने की जरूरत है।